चाहत तुम्हारी
#तुम_कब_आओगे—-
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तुम्हारी बूढ़ी आँखों में
दिख रहा मुझे इक सपना….
आस लगाकर बैठे हो
कब आएगा कोई अपना….
दूर, बहुत दूर चले गए हैं सब
पैसा ही बन गया अब सबका रब……
चकाचौंध में धुंधला गया अब तुम्हारा अक्स
न रहा वो बेटा अपना, है अनजान सा सख्श…..
अब न तुम्हारा प्यार दीखता
न कोई अहसास भीगता…….
न कोई गर्माहट है इस खून के रिश्तों में
जो तुमने बचपन को सींचा भेज रहे वो किश्तों में….
तुम्हारी बूढ़ी झुर्रियों में अपनेपन का दर्द नही दीखता
जन्म देकर पालने का सिर्फ फ़र्ज़ दीखता उन्हें….
तुम्हारी बूढ़ी साँसों की आस
परेशान नही करती है…..
बार बार बजती जो घण्टी
वो परेशान करती है…..
क्या बाबा क्यूँ परेशान करते हो
मुझपर बच्चों की जिम्मेवारी है…..
चाहूँ ग़र सुन न सकूँ मै
ये फरियाद तुम्हारी है…..
#सारांश—
जीवन चक्र चला जा रहा समय की गति भारी
जहाँ आज खड़ा ये बूढ़ा होगी कल तुम्हारी बारी
रजनी रामदेव
दिल्ली