चाहत जिनकी
चाहत जिनकी है रही , लेना मेरी जान ।
उनकी बस्ती में लिया , हमने आज मकान ।।
हमने आज मकान, नाम बस कर ही डाला ।
और रहे चुपचाप , बात सच बोली हाला ।।
कहते श्री कविराय, हुये हैं हम तो आहत ।
बन गई मेरी अजीज,मौत ही अब है चाहत ।।
चाहत जिनकी है रही , लेना मेरी जान ।
उनकी बस्ती में लिया , हमने आज मकान ।।
हमने आज मकान, नाम बस कर ही डाला ।
और रहे चुपचाप , बात सच बोली हाला ।।
कहते श्री कविराय, हुये हैं हम तो आहत ।
बन गई मेरी अजीज,मौत ही अब है चाहत ।।