#चाहत छमछम छमछम बरसूं
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★ #चाहत छमछम छमछम बरसूं ★
दिल का दर्पण हुआ धुंधला धुंधला
वो जबसे गए आँखों से उतरके
चौंक-चौंक जाती हैं खिड़कियां
सहमे-सहमे रहते हैं द्वार घरके
झूला करती हैं समय के माथे पर
गई बीती बातों की झालरें
मैं चुप हूं मेरा मनवा चुप है
देखा करते हैं फिर भी लोग ठहरके
पगलायी-सी फिरे स्मितपैंजनियां
प्रीतनगर की गलियों में
चाव के पांव से विलगी
सखी आशा से बिछुड़के
गमलों में खड़े पीपल के पेड़
और तुलसी का वन प्यासा
आंसू बचे हुए हैं शेषधन
आए गए बादल आँख भर-भरके
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन
पीरपवन इक जैसी चली है
पहचानती हैं सब गलियां
मुझे जानते हैं चौक नगरके
सपने नदियां आते जाते
निश्चय मानसरोवर झील
चाहत छमछम छमछम बरसूं
किसीके नयनों से मैं निखरके
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२