चाहत का हर सिलसिला ही टूटा है।
खुशबुओं ने फूलों से अपना रिश्ता तोड़ा है,,,
देखो परिंदों ने भी शाखों से नाता तोड़ा है।।
हवाएं भी बड़ी गमगीन हो कर चल रही है,,,
जबसे तू इस कदर बारिशों की तरह रोया है।।
मुस्कुराहटों ने लबों के साथ हंसना छोड़ा है,,,
रुखसार पर गिरा हर अश्क लगे शोला है।।
ख़्वाबों ने दुश्मनी कर ली हमारी नजरों से,,,
जबसे दिल कांच की तरह टुकड़ों में टूटा है।।
आते जाते हर मुसाफिर से तुमको पूंछा है,,,
दर-बदर हो कर तुमको शहर-शहर ढूंढा है।।
हैरां परेशां हूं मैं तुम्हारी खैरो ख़बर के लिए,,,
यूं तेरे मुंतजर है हर आहट पे दम निकला है।।
तुमसे चाहत का हर सिलसिला ही टूटा है,,,
हर रिश्ते ने ही हमको जिन्दगी भर लूटा है।।
क्या शामिल हो हम तुम्हारी महफिलों में,,,
झूठी हंसी हंसके दिल तन्हाई में बड़ा रोता है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ