चाहतें हैं
गीतिका
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चाहतें हैं बहुत जग रही क्या करें।
कुछ बताओ हमें धैर्य कैसे धरें।
चांदनी रात का दृश्य है सामने।
आह ठंडी अभी क्यों नहीं हम भरें।
प्रेम की राह पर जब बढ़े हैं कदम।
छोड़िए व्यर्थ क्यों आहटों से डरें।
खूब थे जो महकते रहे रात भर।
पुष्प क्यों अश्रु बन चांदनी में झरें।
बात करते सभी साथ देते नहीं।
कष्ट अपने सभी साथ मिल कर हरें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २८/०७/२०२४