उलझ नहीं पाते
अब चाँद तारों वाले ख़्वाब नहीं आते,
कहने को ये रंगीन अल्फाज नहीं आते।
करना है दरिया को अब तैरकर ही पार,
बस यही सोचकर हम कश्ती नहीं लाते।
कोई आता नहीं मुश्किलें आसान करने,
यही सोचकर हम अब दोस्त नहीं बनाते।
आजकल मुश्किलें घेर कर रखती है हमें,
इसलिये अब किसी से मिलने नहीं जाते।
भरोसा है मुझे अपने‘अभि’पर बस,
इसलिए मुश्किलों में उलझ नहीं पाते।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि