*चाहता दो वक्त रोटी ,बैठ घर पर खा सकूँ 【हिंदी गजल/ गीतिका】*
चाहता दो वक्त रोटी ,बैठ घर पर खा सकूँ 【हिंदी गजल/ गीतिका】
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(1)
चाहता दो वक्त रोटी ,बैठ घर पर खा सकूँ
चाहता हूँ प्रभु तुम्हारे ,गीत मन से गा सकूँ
(2)
देह में अक्षुण्ण रखना, शक्ति अंतिम साँस तक
पैर से चलकर जहाँ, जाना पड़े तो जा सकूँ
(3)
स्वर्ण से मुझको भरे, भंडार की चाहत नहीं
धन जरूरत-भर हमेशा, चाहता बस पा सकूँ
(4)
चाहता मस्तिष्क प्रभु जी, उर्वरा हरदम रहे
सोच कर मैं दूर की, कौड़ी कहीं से ला सकूँ
(5)
कष्ट सारे कर्ज हैं, पिछले जनम के जानता
चाहता हूँ कर्ज से, हो मुक्त तुम तक आ सकूँ
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451