चाहकर भी हमने चाहत को मार दिया
इज़ाहार-ए-मोहब्बत नहीं कर पाये,
क्यों की फासला इतना बढ़ गया…!
रूठने मनाने में ही वक्त निकल चला..!!
उपरसे माहौल भी था भरा भरा…!
तूम भी थे कितने दूर के…!..!..!
पास आना नामुमकिन सा लगा,
थोड़ा डर भी मन को हराने लगा,
शायद खुद पर से विश्वास टूट गया हमारा…!!
और… फिर ख़ामोशी की चद्दरने,
हमारा मुहं जोरों से दबा दिया…!!
चाहकर भी हमने चाहत को मार दिया…!..!!