“चालाकी”
चालाक लोग को अक्ल नही आती,
समझते है चालाकी किसी के समझ नही आती।
उनको कौन समझाए तुम मूर्ख हो,
बस हमे तो उनकी करतूत पर हँसी आती हैं।
ना घमण्ड करती हूं ना फितूर करती हूँ,
ना गिरगिट के जैसे रंग बदलती हूँ।
हाँ मैं बिल्कुल ऐसी हुं जनाब,
जैसे के लिए तैसी हूँ।
जो एक बार दिल से उतर जाए,
उसे वापस नही बसाती हूँ।
झूठा वादा,झूठी बातें,छल,कपट,दिखावा,
इनसे अक्सर दूर रहती हूँ।
सच्चा प्रेम,सच्चे रिश्ते जीवन भर निभाती हूँ,
झूठे प्यार से अक्सर दूर रहती हूँ।
छल के रिश्ते टूट जाये मेरी बला से,
ऐसे रिश्तों का ना मैं साथ निभाती हूँ।
कितना भी कर लो प्यार ऐसे लोगों से,
पर उनकी निगाहों से नफ़रत नही जाती।
रखकर खंजर साथ जो रिश्ते निभाते है,
सामने आकर वो प्यार जताते है।
स्वार्थ से यहाँ लोग बनाते है रिश्ते,
गजब अंदाज लोगों का ,जहां मतलब वही रिश्ते।
यहाँ इंसानियत बिकने लगी है चंद लम्हों में,
मगर दम तोड़ देते है ,जिनके हृदय में प्रेम हैं पलते।
हो जाती मोहब्बत गर मेरी भी ऐसी आदत होती,
कहते है इंसान की फितरत नही जाती।
चालाकियों की चालाकी भी बड़ी चालाक होती है,
ईश्वर बचाएं इनसे, चालाकी खतरनाक होती हैं।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️