चार लाईने
बंदिशो में रहने का आदी नहीं हूँ
अहिंसा का पुजारी गाँधी नहीं हूँ ।
दिल गर जीत लिया,जान दे दूंगा
लीडरों सा मै अवसरवादी नहीं हूँ ।
-अजय प्रसाद
रो रही थी आज विचारी गाँधी की तस्वीर
हिंसक ही कर रहे थे अहिंसा पर तक़रीर ।
राम राज के नाम पे वर्षो होती रही है लूट
जाने लोकतंत्र की कब बदलेगी तक़दीर ।
-अजय प्रसाद
लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद
किसी कमजर्फ़ से अब इल्तिजा क्या करूँ
जब होनी ही नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ ।
चाहता तो हूँ चलना इमानदारी के रास्तों पर
मगर साथ ही न दे जब ये जमाना क्या करूँ
-अजय प्रसाद
गरीबी में जीना और गुमनाम गुजर जाना है
शोषितों,पीड़ितों तुम्हें ये काम कर जाना है ।
मत रखना उम्मीद अपनी तरक़्क़ी का कभी
हर दौर में बस अपने वजूद से मुकर जाना है ।
-अजय प्रसाद
खुदगर्ज़ी से भरे खोखले आश्वासन
बेहद कारगर है बनावटी अपनापन ।
आजकल वो सफल है सियासत में
जो भी करे इमानदारी से दोहरापन।
-अजय प्रसाद
हुस्न से अदावत न कर
इश्क़ से वगावत न कर ।
जीना है खुशहाल ज़िंदगी
मौत से तू नफ़रत न कर ।
-अजय प्रसाद
मजबूरियाँ मेरी आजकल मुझे चिढ़ा रहीं हैं
मायूसी अपनी कामयाबी पे मुस्कुरा रही हैं ।
अश्क़ आँखों में आने से भी लगे है मुकरने
ख्वाहिशें खामोशी से खुदकुशी किये जा रही है ।
मौत हो गयी है मेरे खिलाफ़ रूठ कर मुझसे
ज़िंदगी रोज़ नये हादसों से दिल बहला रही हैं ।
-अजय प्रसाद
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
रहम दिलों में भी जरा नहीं होता ।
बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे
इंसानियत का पहरा नहीं होता ।
बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है
रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।
-अजय प्रसाद
खुद के अन्दर , ज़मीर ज़िंदा रख
भले हो दिल से,अमीर ज़िंदा रख ।
ठीक है तू होगा दौलत मंद मगर
ज़ेहन में एक फ़कीर ज़िंदा रख ।
नामुमकिन है कि मासूमियत लौटे
खुद में बचपन शरीर ज़िंदा रख ।
-अजय प्रसाद