चार लाईनें
आप मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते
क्योंकि बर्खास्त नहीं कर सकते ।
मेरी जीत आपको बड़ी अखरती है
और मुझे परास्त नहीं कर सकते ।
-अजय प्रसाद
आईये हम आज कुछ और करतें हैं
अपनी गल्तियों पे भी गौर करतें हैं ।
बहुत बिठाया है अक्लमंदो को सर पे
ज़रा जाहिलों को भी सिरमौर करतें हैं
-अजय प्रसाद
बदल चुके हैं हालात हुजूर अब तो मानिये
नही रही आप मे वो बात अब तो मानिये ।
कब तक छ्लेँगे जनता को जूमलो से आप
ढल चुकी है गफलती रात अब तो मानिये ।
-अजय प्रसाद
दोषपूर्ण राजनीती से कुछ तो हटकर हो
अब के मज़म्मत रहनुमाओ की डटकर हो ।
उम्र जैसे हर पल हर दिन हो रहा है कम
काश ज़ुर्म भी हर पल हर दिन घटकर हो ।
-अजय प्रसाद
देख हालत इंसानों की सिहर जाता हूँ
कुछ मालुम नहीं मुझे किधर जाता हूँ ।
इतनी विसंगतियों के बावजुद हूँ जिंदा
बस ज़मीर ओ जेहन से मर जाता हूँ ।
-अजय प्रसाद
जिधर देखो उधर बस यही मंज़र है
सबके हाथों में तकनीकि खंजर है
अफसोस है कि उन्हें पता ही नही
कितना खालीपन खुद के अन्दर है ।
-अजय प्रसाद
जुमले नहीं अब जबाब चाहिए
पांच साल का हिसाब चाहिए ।
जिसमे हो हमारे प्रश्नो के उत्तर
वही अपेक्षित किताब चाहिए ।
-अजय प्रसाद
हक़ीक़त से भला तुझे है इंकार क्यों ?
झूठी चमक से इतना तुझे है प्यार क्यों ?
इतनी अकड़ भी देख अच्छी नहीं होती
मालूम है अंजाम फ़िर अहंकार क्यों ?
-अजय प्रसाद
क्या पता था कि फ्यूचर उसका ब्राईट होगा
जिस एरिया में है थानेदार वो रेड लाईट होगा ।
आम के आम और मिलेंगे गुठलियों के दाम
इनकम अब उसका ब्लैक एंड व्हाइट होगा ।
-अजय प्रसाद
तकलीफें ही बन जाती हैं ताक़त कभी कभी
और दे जाती हैं मुश्किलें भी राहत कभी कभी ।
टुट जाती है हिम्मत, हिम्मतवालों के इश्क़ में
बुजदिली कर जाती हैं हिमाकत कभी कभी ।
सहती रहीं हैं ज़ुल्मों सितम हलाला के नाम पे
बोझ लगती है मुझे तो ये रिवायत कभी कभी ।
-अजय प्रसाद
शब्द मेरे सब शहीद हो गए
जब से हम तेरे अज़ीज़ हो गए ।
चाँद सूरज फूल तारे हैं खफ़ा
हम जो तेरे मुरीद हो गए ।
-अजय प्रसाद
धीरे-धीरे खुद मैने उससे किनारा कर लिया
जो भी मिला,जितना मिला गुजारा कर लिया ।
वक्त से पहले,तक़दीर से ज्यादा किसे मिला ?
बस यही सोंच कर जीना गवारा कर लिया ।
फ़िर कभी तन्हाईयों को शिकायत नहीं रही
जब तेरी यादों को मैने सहारा कर लिया ।
-अजय प्रसाद
मसर्रत है मेरे नसीब में कहाँ ?
हैसियत मुझ गरीब में कहाँ ?
जब कोई मेरी दिलरुबा नहीं
तो शामिल मै रकीब में कहाँ?
-अजय प्रसाद
ज़हमत ज़िन्दगी के हम उठा रहें हैं
लम्हे-लम्हे खुद को यूँही मिटा रहें हैं ।
घर ,दफ्तर ,वीबी,बच्चे या दोस्तों में
सुबहो शाम ,रात और दिन लूटा रहे हैं ।
-अजय प्रसाद