चार दिन की जिंदगानी
***चार दिन की जिन्दगानी*****
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जाने वाले कभी रुकें हैं कहाँ
सदा यादों में जिन्दा रहते हैं यहाँ
एक दिन तो सभी को जाना ही है
चाह कर कोई रूक ना सका यहाँ
सांस पूरी हो जाएं जब जमीं पर
पल भर ना कोई ठहर पाया यहाँ
जग में मेले सदा भरते रहेंगे
आना जाना लगा रहता है यहाँ
धरती किसी की भी विरासत नहीं
काहे को हम हक जमाते हैं यहाँ
जी भर के लुत्फ उठाते रहो सदा
चार दिन की जिन्दगानी है यहाँ
हाय तौबा जीवन में मत कीजिए
जिनदगी का भरोसा नहीं है यहाँ
भविष्य चाह में वर्तमान खो रहे
सुखविंद्र मस्ती में मदमस्त है यहाँ
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)