चार तांका
1. जब से प्रीति
मन के गांव बसी
महके अंग
मन-सितार बजे
नये सपने सजे ।
2, पीपल पात
तालियाँ बजा रहे
मुग्ध चिडिया
सहसा गाने लगी
उदासी जाने लगी ।
3. बरसे मेघ
पुरवाई मचली
धरती सजी
इन्द्रधनुष आया
थिरक उठी काया ।
4. आशा के दीप
खिलखिलाते रहे
दिखाते रहे
खुशियों की डगर
पड़ाव के नगर ।