#ग़ज़ल-18
चारों खाने चित हुआ मैं तेरी इस मुस्क़ान पर
इक तेरा नाम रहता बस मेरी ज़ुबान पर/1
आँखों का तू ही निशाना देखूँ राह यार की
लगता जैसे तीर कोई साधा हो कमान पर/2
दिल की गाड़ी प्यार में रोकी तूने प्यार से
छूटेगी अब प्यार के ही काटे इक चलान पर/3
मोहब्बत ऐसा नशा है इसकी तो दवा नहीं
कोई रहता होश में ना रहता बस उड़ान पे/4
रिश्ते सारे भूल के मैं तुझमें एक खो गया
कैसे होता है भरोसा इतना भी अजान पर/5
प्रीतम तेरी प्रीत का मैं दीवाना सधा हुआ
जाऊँगा ना छोड़ तुमको ऐसा हूँ उफान पे/6
आर.एस.”प्रीतम”
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