चारों और पसरा है सन्नाटा
चारों और पसरा है सन्नाटा
जुगनुओं का प्रकाश
स्वतन्त्र पक्षियों की चहचाहट
बहती फ़िज़ाओं की आवाज़
आज क़ैद है, मनुष्य
अपने बिछाए हुए ज़ाल में.
यह परिणाम है.
प्रकृति को अपने अनुकूल
बनाने की जिद्द का,विद्रोह का
अतःएव विध्वंस
विध्वंस की परिभाषा है विकास
विकास अग्रसर है अपने लक्ष्य की ओर
लक्ष्य की अंतिम सीढ़ी ले जाती है
मानव सभ्यता को विनाश की ओर।
भूपेंद्र रावत
10।04।2020