चाय
जाड़े की सुरमई शाम और
अदरकी चाय की चुस्कियां
गुजरती शाम में तन्हाई का समां
हमें तनहा होने नहीं देता।
यादों की सुलगती आँच
बेहद नरमी से सपनों की
सिकाई करती है।
टूटे किसी ख्वाब की किरचन
जब चिंगारी बन चटक जाती है,
तन्हाई बेहद मोहब्बत से
घाव को सहलाती है,दुलराती है,
मानो मरहम लगाती है।
ढलती शाम पर उतरती
खामोश रात की सर्द हवाएं
कुछ अनकहा सा कह जाती है।
खामोशी लबों पर
एक बात रख जाती है।
मुख्तसर सी वह बात
फिर अनसुनी रह जाती है
पर अभी जिंदगी बाकी है,
ये कह कर
लबों को फिर मुस्कुराना सिखाती है।
..© डॉ सीमा