चाय
चाय
मै : चाय की तलब है ।
तुम : क्यों
मैं : तुम संग बालकनी में बैठ
चाय की चुस्कियों संग
हंस बतियाने की।
तुम : तुम्हारी सेहत के लिए ये सही नहीं है।
मैं : बिल्कुल ठीक पर मन कहता है।
क्या करूं?
तुम (सख्ती से) : मन की मत सुनो।
इसे अनसुना करो।
मैं : मनाये न मनेगा
जब अपनी पर आएगा
तुम : ठीक है बना लो ।
मगर आधा-आधा कप।
………
दो बड़े मग अधभरे स्टूल पर रखे हैं
तुमने ….चाय को देखा।
मैने …….तुम्हे देखा।
फिर दोनों ने एक दूसरे को।
जोर से ….हंसी का ….ठहाका।
संगीता बैनीवाल