चाय की चुस्की
चाय की चुस्की
चाय की चुस्कियों की मिठास जाने कहॉं खो गई
कुटी हुई अदरक में से सेहत कहॉं गुम हो गई
कॉफी पहले केवल मेहमानों के लिये बना करती थी
तो हम भी अपनी कटोरी आगे कर देते थे
अब रोज़ भले ही मग भर कॉफी पी लें
पर उसमें वो कडकपन अब कहॉं
नानी दादी के हाथ का बना वह आटे का सीरा
घी से तरबतर , फिर उसमें काजू बिदाम भले न हो, दो प्याले खाकर भी मन नहीं भरता था
तब जाने क्यों घी कहीं शरीर पर न चिपकता था
अब स्टील के डिब्बे की जगह गत्थे के डिब्बे मे रखी ड्राई फ्रूट मिठाई
डिब्बों में रखे रखे ही सूख जाती है
अपने भाई के हिस्से में से थोडी खा लेने में जो मजा था
वो मजा इन परोसी गई मिठाईयों में अब कहॉं
अब मेन्यु भले ही लम्बे चौडे हो
चाइनीज इटालियन मेक्सीकन
पर सच कहूं दोस्तों,
जो बात बासी रोटी और आम के अचार में थी
वो बात इन पकवानों में अब कहाँ।