!! चाय की चुस्की और अखबार !!
बड़ा गहरा रिश्ता है
तेरा और मेरा
न जाने कब से
चला आ रहा है
तेरे बिना मेरी आँख
नहीं खुलती और
खुलती है तो तेरे
बिना में रह नहीं पाती
इक खबर जिस को
पढने को मन आतुर हो
जाता है, और पत्नी जब
लाकर रखती है
प्याला गर्म गर्म चाय
का , तो मेरी आँख
खुल जाती है
हर सुबह तेरा इन्तेजार
रहता है, जिस
दिन अखबार वाला नहीं
डालता अखबार मेरा
दिन ही बेकार हो जाता है
ऐसा लगता है, जैसे
दोनों की आत्मा एक
दूजे संग जिन्दा है
बस यह रिश्हता तेरा – मेरा
यूं ही चलता रहे
में तुझ को पढता रहूँ
और तून, गर्म गर्म
चुस्की लेती रहे……..
अजीत कुमार तलवार
मेरठ