*चाय और चाह*
बातें दो-चार करें कैसे,
हाल तुम्हारा सुने कैसे,
कुछ गरम मधुर सा स्वाद बुने,
चाह भरी इस चाहत में यादों का अंबार बुने।
तीखी वाणी छोड़ो सबसे दो मीठी प्याली चाय बने।।
निर्मल प्रेम सा नीर पड़े,
हृदय भाव सा क्षीर पड़े,
मिश्री यादों सा घोल मिले,
कुछ मार्मिक सा बोल मिले,
शब्द प्रेम की धीमी लौ में यारों का स्नेह मिले।
तीखी वाणी छोड़ो सबसे दो मीठी प्याली चाय बने।।
वो चाह भी अब तो कहीं नहीं,
वह चाय भी फिर से बनी नहीं,
बस औपचारिकताओं का खेल यहां।
जहां चाह नहीं वहां चाय कहां
जहां चाह नहीं वहां चाय कहां
शशांक मिश्रा