चापलूसों का ही तो ज़माना है !
चापलूसों का ही तो ज़माना है !
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चापलूसों का ही तो ज़माना है।
चापलूसों ने हार कब माना है।।
जहाॅं जाओ चापलूस मिल जाते !
किये कराए पर पानी फेर जाते !
बातों का उनकी कोई भरोसा नहीं,
जब जैसा हो तब तैसा कर जाते !!
बातों को बढ़ा-चढ़ाकर वे पेश करते !
सदैव खुद के फायदे की ही सोचते !
परहित से उन्हें नहीं कुछ लेना-देना ,
औरों को झूठी दिलासा देकर रखते !!
चापलूसों का ही तो ज़माना है ।
चापलूसों ने हार कब माना है ।।
लोग इनके झांसे में जल्द ही आ जाते !
क्यों कि ये स्वभाव से ही चालबाज़ होते !
यदा-कदा तो वे मीठा व्यवहार भी करते ,
व विश्वासपात्र बने रहने का नाटक करते !!
आज जब हर जगह भ्रष्टाचार चरम पर है ,
चापलूसों का तो उसमें किरदार अहम है ,
बस, इन्हीं के माध्यम से भ्रष्टाचार फैलता !
कोई ना कोई चर्चा होता हर रोज़ गरम है !!
चापलूसों का ही तो ज़माना है ।
चापलूसों ने हार कब माना है ।।
कई जगहों पे ये शिकार की तलाश में रहता !
सबकी ही गतिविधियों पर खूब ध्यान रखता !
भनक लगते ही वो काम का ब्यौरा ले लेता !
फिर काम के पेंचीदा होने का वृत्तांत गढ़ता !!
फिर कार्य आसान करा देने का वादा करता !
इस ऐबज में एक मोटी-रकम की मांग करता !
कभी कार्य कराने में वो सफल भी हो जाता !
पर कभी रकम ऐंठकर नौ दो ग्यारह हो जाता!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 08 जनवरी, 2022.
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