चातुर्मास::महत्व अर्थ और उद्देश्य
चातुर्मास::
महत्व,अर्थ और उद्देश्य
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आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं।लगभग प्रत्येक एकादशी को कोई न कोई नाम दे दिया गया है हमारे पूर्वजों द्वारा।आज की आधुनिक प्रगतिशील युवा जन को एकादशी का अर्थ समझाने में कठिनाई होगी।हिंदु मास को दो भागों में बाँटा गया है; कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।ऐसा चंद्रमा की घूर्णन दशाओं को लेकर किया गया। आसान शब्दों में समझें तो पंद्रह दिन जब चंद्रमा नजर आता है तो उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं और जब नजर नहीं आता तो इसे कृष्ण पक्ष कहते हैं ।यह तिथि की गिनती क्योंकि संस्कृत में होती है तो ग्यारह को संस्कृत में एकादश कहते हैं इसलिये इसे एकादशी कहते हैं।
क्योंकि आषाढ़ मास समाप्ति की ओर होता है और सावन दस्तक दे रहा होता है इसलिये वर्षा ऋतु की तैयारी आरंभ हो जाती है।क्योंकि भारत में प्रमुख रूप से तीन ऋतुएं होती हैं;ग्रीष्म,वर्षा और शरद्। तो प्रत्येक ऋतु के चार मास होते हैं: प्रत्येक ऋतु का अपना महत्व होता है;क्योंकि हम वर्षा ऋतु की बात कर रहे हैं इसलिये इस ऋतु के चार मासों चातुर्मास अथवा चौमासा कहते हैं।
इसी चातुर्मास का आरंभ इस देवशयनी एकादशी से होता है;तो अब के बाद सारे शुभ कार्य करने बंद हो जाते हैं।भगवान श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं जब तक देव उपस्थित न हों तो शुभ कार्य कैसे हों?
सभी साधु संत प्रवास पर चले जाते हैं और चार मास एकांत वास करके चिंतन मनन करके समाज को नई दिशा दें।समाज में यदि कोई कमी है तो उसे दूर करने का उपाय पर चिंतन होता है।प्रभु को कैसे प्राप्त किया जाये ;उनसे साक्षात्कारः कैसे करें; इसका मनन;कुछ संत इस चातुर्मास में ग्रंथ भी रच लेते हैं।पूरा वातावरण ही अध्यात्मिक हो जाता है।यह केवल हिंदु धर्म के अतिरिक्त जैन और बौद्ध आदि के संत समाज भी चातुर्मास में चिंतन मनन करते हैं।
चातुर्मास का कारण खोजते हैं;वर्षा ऋतु में प्रकृति का नवीनीकरण होता है।पहाड़ तक जल के वेग को सहन नहीं रोक पाते और टूटने शुरू हो जाते हैं;नदियां तटबंध तोड़ कर जल प्रलय नगरों और क़स्बों में प्रवेश कर जाता है।जंगली जानवर जंगल से बाहर आ कर अपना भोजन तलाश करने लगते हैं:किसी भी जीव पर आक्रमण करके उसे ही खा जाते हैं। सरीसृप अपने बिलों से निकल आते हैं;वनस्पतियां अपने को वृहद आकार देने लगती हैं।चारों ओर हरियाली छा जाती है परंतु इस हरियाली में ही छिपे होते हैं जीव जंतु जो आपके लिये घातक हो सकते हैं।
इसलिये जहां तक संभव हो इन दिनों के लिये सुरक्षित स्थान खोज लें।ग्रहस्थ हैं को घर पर रहें। पर्यटन पर न जायें। साधु और संत समाज अपने आश्रम में अथवा कोई ऐसे स्थान पर जा सकते हैं जहां आपकी तपस्या,चिंतन मनन में कोई विघ्न न डाल सके। तो इसलिये होता है चातुर्मास और इसका समापन होता है कार्तिक मास की देव उठनी एकादशी के साथ।
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राजेश’ललित’