*”चातक पक्षी”*
“चातक पक्षी”
स्वाति नक्षत्र की है आस ,
चातक पक्षी की है ये प्यास,
एक बूंद को है तरसता ,
एकटक टकटकी निहारता ,
तनमन आस लगाए है।
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अमृत की जलधारा जब बहे ,
नेह की आस आंखो से नीर बहे ,
सूखे कंठ लंबी चोंच खोलकर ,
कठिन व्रत तप साधना कर ,
इंद्रदेव से गुहार लगाए है।
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धरती पर जब अमृत की बूंद गिरे ,
ताल तलैया का जल ग्रहण न करे,
स्वाति नक्षत्र की बूंद में अनेक गुण भरे ,
केले का स्पर्श कर कपूर बन जाए ,
सर्प में जब बूंद गिरे विष बन जाए,
सीप में जब बूंद गिरे मोती बन जाये है।
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सावन का करे जब वो इतंजार ,
बारिश की बूंदों की पड़ी फुहार ,
वर्षा की एक बूंद पाने मुँह खोले रखता ,
स्वाति नक्षत्र की बूंद से प्यास बुझाता ,
सूखे कंठ तर तृप्त हो हर्षित हो जाता ,
तृप्ति मिले चातक पक्षी को प्यास बुझाए है।
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तपती धरती तृप्त हो प्यास बुझा जाते ,
तरसती ये नम आंखों से मन हर्षित हो जाते ,
हॄदय में जो हलचल मची वो बार बार पुकारते ,
काले काले बादलों ने रूप दिखलाये हैं।
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शशिकला व्यास✍️