*”चातक पक्षी “*
“चातक पक्षी”
स्वाति नक्षत्र की बूंद ,
चातक आस लगाए,
आकाश में निहारता,
मेघ बरसाए है।
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अमृत की धारा बहे ,
सूखे कंठ खोलकर ,
कठिन व्रत साधना ,
गुहार लगाए है।
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धरती पे बूंद गिरे ,
नदी ताल भर गए ,
सर्प पे जब गिरता ,
विष बन जाए है।
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सावन का इंतजार ,
बूंदों की पड़ी फुहार ,
सूखे कंठ तर करे ,
प्यास बुझाए है।
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शशिकला व्यास ✍️