*चाची जी श्रीमती लक्ष्मी देवी : स्मृति*
चाची जी श्रीमती लक्ष्मी देवी : स्मृति
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मैं उन्हें चाची कहता था । नंदलाल चाचा वाली चाची। 7 मार्च 2022 की रात्रि को आप के निधन के साथ ही मोहल्ले में सबसे बुजुर्ग व्यक्तित्व का साया उठ गया । आपका पूरा नाम श्रीमती लक्ष्मी देवी था । आत्मीयता से भरा व्यक्तित्व । चेहरे पर सदैव मंद मुस्कान बिखरी रहती थी । न कभी गंभीर दिखीं, न कभी खिलखिलाकर हँसते हुए देखा । अनुशासन में जीवन बँधा हुआ था ।
20 जनवरी 2021 को हम लोग (श्रीमती नीलम गुप्ता और श्री विवेक गुप्ता के साथ) राम मंदिर निर्माण के लिए जब मोहल्ले में चंदा इकट्ठा करने के लिए गए ,तो चाची जी के घर भी गए थे । आपका स्वास्थ्य उस समय कोई बहुत अच्छा तो नहीं था लेकिन स्वभाव के अनुकूल प्रसन्नता आपके मुख पर विराज रही थी । आपने चंदा दिया और उस क्षण को कैमरे ने आपकी मुस्कुराहट के साथ स्मृति-मंजूषा में सुरक्षित कर लिया। आपके दोनों पुत्र भी धार्मिक भावना से ओतप्रोत हैं।
चाची जी का घर और हमारा घर बिल्कुल पास-पास है। बीच में सिर्फ एक दीवार है । उस दीवार के कारण जो पृथकता आती है ,उसको कम करने का काम भूमि तल पर एक खिड़की करती रहती थी। बचपन से यह खिड़की हम देखते चले आ रहे हैं । इसी खिड़की से रोजाना हमारी माताजी की चाची से बातचीत होती रहती थी। मानो इतना ही पर्याप्त नहीं था। एक दरवाजा छत पर भी दोनों घरों के बीच आने-जाने के लिए बना हुआ था । चाची जी के छोटे पुत्र पंकज अग्रवाल तो आयु में मुझसे काफी कम हैं लेकिन बचपन में जब हम लोग छत पर खेलते थे ,तब उस दरवाजे से चाची जी के बड़े पुत्र अशोक कुमार भी खेलने आ जाते थे। कई बार चाची जी की पुत्री शशि भी खेल में सम्मिलित हो जाती थीं। इन दोनों की आयु लगभग मेरे बराबर ही है । चाची जी की ननद श्रीमती उषा रानी खेल में सम्मिलित तो नहीं होती थीं, लेकिन बहुत बार वह दर्शक की भूमिका में खड़ी अवश्य रहती थीं। उनकी आयु मुझसे थोड़ी अधिक थी। खेल क्या थे ,बस यह समझिए कि जमीन पर चॉक से लकीरें खींच कर प्रायः एक टाँग से इकड़ी-दुगड़ी-तिगड़ी होती रहती थी ।
एक बार का किस्सा है कि इकड़ी-दुकड़ी ज्यादा खेलने के कारण मेरे पैर में दर्द हो गया । फिर वह जब सही नहीं हुआ तो डॉक्टर पृथ्वीराज को दिखाया गया । वह अनुभवी थे । उन्होंने तुरंत पूछा कि कोई नया काम किया हो या कोई ज्यादा काम कर लिया हो ,तो बताओ ? उसके बाद इंक्वायरी में यह बात सामने आ गई और उन्होंने पकड़ ली कि इकड़ी-दुकड़ी खेलने के कारण ही यह पैर में दर्द हुआ है । फिर कोई दवाई उन्होंने नहीं दी । कहा -“आराम करो ,सही हो जाएगा”। यही हुआ । एक दिन में आराम आ गया ।
चाची जी खेलकूद को अच्छा तो मानती थीं, लेकिन जरूरत से ज्यादा खेलने में उनका विश्वास नहीं था । वह हमें भी पढ़ने के लिए कहती थीं और खेल को एक सीमा तक उतना ही सराहती थीं, जिसमें पढ़ाई डिस्टर्ब न हो ।
उनकी साधुता उनकी अपनी ही विशेषता थी । उन्हें मैंने कभी ऊँचे स्वर में बोलते हुए नहीं देखा । तथापि विचारों की स्पष्टता तथा सद्वृत्तियों के प्रोत्साहन के प्रति दृढ़ता उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा । पिछले कुछ महीने से वह बिस्तर पर ही थीं। परिवार ने उनकी सेवा में कोई कसर नहीं रखी । जैसे उन्होंने उत्तम संस्कार परिवार को दिए ,यह सब उसी का सुफल था। चाची जी की स्मृति को शत-शत नमन ।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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