चांद
चांद
दिनांक..09/05/2020
विषय… गीत
===== चांद====
मेरी बीवी के माथें पर, चमकें चांद- सितारे।
कितने प्यारे -प्यारे लगते,सच में चांद -सितारे।।
धरती जैसे लगती सूनी, फूलों बिन बहारों के।
ऐसे ही कोरा कागज़ है,फलक बिन चांद- सितारों के।।
जैसे दिन का दीपक दिनकर,सबके मन को भाता है।
ऐसे ही रात को चंदा, धरती को हर्साता है।।
बच्चा जब जिद्द पर अडकर ,मानें नहीं मानता है।
जब मां की लोरी में चंदा,चंदा मामा बनता है।।
दिन की गर्मी की उमस,जब कर देती है व्याकुल सी।
तब चंदा की शीतलता, लगती है मन को भावन सी।।
पर अमावस्या ने चांद की ,चांदनी बदनाम करी।
पूनम रात की चांदनी , अमावस्या पर भारी पडी।।
रोज- रोज तो जाना छत पर, होता नहीं चंदा देखूं।
सोचा क्यूं ना बीवी के ,माथें की बिंदियां ही देखूं।।
बिन चंदा कब खुलता है , जन्माष्टमी का व्रत।
करवा चौथ पर चांद निकलनें पर ही, बीवी पिलाती है अमृत।।
चांद निकलता नहीं है जब तक, ईद मुबारक नहीं होती।
बिन चंदा मामा की कहानी,सुन बिटिया ना सो पाती।।
कभी छत पर देखूं मैं, कभी बीवी के घूंघट में।
चांद नज़र आता है मुझको,बीवी के मुस्काने में।।
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गीत के मूल रचनाकार
डॉ.नरेश कुमार “सागर”