चांद
तुमसे बिछड़ कर गोया चांद
अपना सब कुछ खोया चांद…
(१)
याद करके पिछले दिनों को
कल रात बहुत ही रोया चांद…
(२)
अंधेरा ही अक़्सर फला उसमें
जिस जगह चांदनी बोया चांद…
(३)
फिर भी दाग मिटा न उसका
खून-ए-दिल से धोया चांद…
(४)
दब के रह गए अरमान उसके
जाने कितना बोझ ढोया चांद…
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Shekhar Chandra Mitra
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