“चांद है पर्याय”
हमें सुला लो ऐ! उपवन,
अपने बेदाग साएं में।
दाग लगा मुझ पर,
चांद — — — सा ,
बेदाग अपनी राहों में ।
इसलिए जल रहा ये चांद,
देखकर उस चांद को,
चांद हैं पर्याय हमारा,
जीभर के छुड़ा लें,
अपने दाग को।।
राकेश चौरसिया
हमें सुला लो ऐ! उपवन,
अपने बेदाग साएं में।
दाग लगा मुझ पर,
चांद — — — सा ,
बेदाग अपनी राहों में ।
इसलिए जल रहा ये चांद,
देखकर उस चांद को,
चांद हैं पर्याय हमारा,
जीभर के छुड़ा लें,
अपने दाग को।।
राकेश चौरसिया