चांद है तन्हां
चांद है तन्हां
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चांद भी है तन्हां, आसमां भी तन्हां,
जहां भी क्यूं है, वीरान और तन्हां।
दिल की हर धड़कन का धक-धक होना,
सांसों का ऐसे चलना, क्यूं है तन्हां।
राह देखेगा जहां, सदियों तक,
छोड़ेंगे एक मिसाल, फिर मन
क्यूं है तन्हां।
पथ में बैठे हुए हैं,दिल अपना
टूटा सजाकर,
एक दिन इसी पथ से,
काश! खुशियां गुजरें।
तुमको भी चाहत है, हमको भी है चाहत ।
फिर हार क्यूं गया दिल,
जब चाहत से गुजरे ।।
कश्मकश में है मन, उलझन है
जीवन में।
उलझन को सुलझाने में, सदियां बिता
हम गुजरे ।।
सागर से गहरी है,चाहत दिलों की,
कोई थाह नहीं इसकी, पैमाने पर
हम गुजरे।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,