“चांद तो हमारा है”
“चांद तो हमारा है”
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चांद तो, अब से हमारा है;
हमको ये , बहुत प्यारा है;
हम इसे, सदा खूब देखते;
ये भी हमें, चांदनी फेकते।
अमावस , जब भी आती;
तो नजर नहीं यह , आती;
कहीं हो जाती है , ये गुम;
इस दिन ले लो , इसे तुम।
फिर यहां , झूला लगाओ;
या इसपर जाके, इतराओ;
अमावस बिते, अगले दिन;
तुम, जरूर जमीं पे आओ।
क्योंकि फिर,चांद है हमारा;
नजर न डालो, फिर दुबारा;
धरा पे ही टिके रहना सीखो,
चांद विषय में कुछ न लिखो।
चांद पे पहले से दाग लगा है;
सब उसपर जाए, ठीक नहीं;
जिसने धरा पे, किया दगा है;
चांद चाहे उसे, नजदीक नही।
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स्वरचित सह मौलिक
……✍️पंकज ‘कर्ण’
………… कटिहार।।
तिथि: २९/९/२०२१