चांद से बातें
न जाने क्यों आज तेरी ,
चांदनी में भी वह कशिश नहीं ।
यह दिल तो तन्हा था ही ,
पर तेरी रोशनी में भी चमक नहीं ।
बहुत सुना था तेरे बारे में,
कि तेरी चांदनी से अक्षर,
दीवानी बातें करते हैं।
ना जाने क्यों मुझे यह,
सच नहीं लगता ।
मानो सब बहाने करते हैं।
कहा जाता है कि चांद,
देखने पर मोहब्बत और,
बढ़ जाती है ।
पर आज ऐसा कुछ नहीं,
एक-दो दिन बाद मोहब्बत,
उतर जाती है ।
कोई विरला ही है जो,
तुझ में अपनी मोहब्बत को निहारता है ।
आज किसी के पास इतना,
वक्त कहा,
बस वाह! वही के लिए तेरा जिगर करता है ।
मैं जानना चाहती हूं तुझे भी ,
वह लम्हे याद आते हैं ।
जब दो सच्चे दिल जुदा ,
होकर तेरी चांदनी को निहारते है।
ए फलक के चांद,
आजकल कहां किसी ,
से कोई सच्ची मोहब्बत करता है। महज टाइमपास के लिए,
ही एक चेहरे पर आज,
का दिल मरता है ।