* चांद के उस पार *
** मुक्तक **
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कल्पनाओं में नये कुछ रंग भरने चाहिए।
मेघ नभ पर भी छितरते कुछ उमड़ने चाहिए।
चांद के उस पार जाने की तमन्ना को लिए।
प्यार के पंछी प्रवासी भी निकलने चाहिए।
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शाम ढलती जा रही है लालिमा लेकर नयी।
चन्द्रमा पर श्वेत आभा दिख रही आभामयी।
लग रहे ज्यों स्पर्श करते चोंच से शशि को सहज।
पाखियों सँग है बनी दृश्यावली महिमामयी।
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चाहते हैं खूब मन में खिलखिलाती जा रही।
स्नेह की कश्ती समुंदर में बहाती जा रही।
डूबते ही जा रहे मन भावनाओं में गहन।
प्रेम रस में एक दूजे को मिलाती जा रही।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य