चांद का दर्पण
चांद का दर्पण
पूर्ण चंद्र की दिव्य आभा से हुआ नील वर्ण पर्यावरण
डूबा प्रेम में देख रहा है शशि, देखो क्षीर सिन्धु में दर्पण।
चांदनी हुलस रही प्रिय संग, किया प्रेम में आत्मसमर्पण।
दूर क्षितिज के पार जा पहुंचीं, शाश्वत प्रीति की धारा।
मदहोशी में है शरद यामिनी,नभ चमक रहा है सारा।
निश्छल कल-कल बह रही है, पावन प्रणय की सरिता।
मादक दामिनी की गूंज सुन, प्रेयसी का हृदय सिहरता।
देखो, प्रेमी पूनम के चांद का,खुल गया आज है राज़।
शहदमयी हुई निशा सलौनी, वादियां छेड़ रहीं साज।
पुलकित परिवेश में खिल रहे हैं शुभ्र कमल।
उल्लसित हो रहे चांद चांदनी शाश्वत प्रेमी युगल।
शुभ रात्रि का सुंदर यह काल है।
सब हर्षित हैं और निहाल है।
नीलवर्णी इस रात में सृष्टि का हर कण जी रहा है।
प्रत्येक प्राणी का हृदय आज, प्रेम संजीवनी पी रहा है।
उल्लास सबका उमड़ रहा है, इंदु कर रहा क्रीड़ा अनंत।
नीलम हुआ आज मोहक मौसम, वातावरण है प्राणवंत।
नीलम शर्मा