चांदनी रात
चांदनी रात और सूनी राहों के बीच।
आदमी खड़ा है खुद के गुनाहों के बीच।
गुनाह कुछ और नहीं बस मोहब्बत है,
के आदमी दिख गया भवनाओं के बीच।
वो प्रेम किया और गुनाहगार हो गया।
जमाने के आगे बहुत लाचार हो गया।
उसे कोई ढूंढे भी तो ढूंढे कैसे।
वो खो गया है अब तो तारों के बीच।
आदमी प्रेम का दरिया पार करे तो करे कैसे।
जब जंग हो गयी है पतवारों के बीच।
-सिद्धार्थ