चांदनी रात है
* गीतिका *
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चांदनी रात है मुस्कुराओ जरा।
स्नेह के भाव मन में जगाओ जरा।
बादलों से बहुत खेलता चंद्रमा,
जुल्फ तुम भी सघन अब उड़ाओ जरा।
है समंदर गहन चांदनी का बहुत,
मध्य इसके उतर कर नहाओ जरा।
रजनीगंधा के सुन्दर खिले पुष्प हैं,
जुल्फ में खूब इनको सजाओ जरा।
जब निखर है गया दृश्य चारों तरफ,
हैं नजारे हसीं मन लगाओ जरा।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)