चांदनी न मानती।
चाँद कितना खूबरसूरत ,
चांदनी न जानती।
होती न रात काली,
चाँदनी न मानती।
चाँद का मूल्य क्या है,
वो न पहचानती।
छिपता न बादलों में,
चांदनी न मानती।
चाँद कितना शीतल है,
ठंडक न जानती।
होता न सूर्यताप जो,
चाँदनी न मानती।
चाँद जो न घटता-बढ़ता
पूनम-अमावस न करता
‘दीप’ के प्रकाश सा जलता
सूरज उसी को मानती
-जारी
©कुल’दीप’ मिश्रा