चाँद
चाँद
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हर रोज आसमाँ में दिखाई देता है
चाँद
फिर क्यों ढूँढ़ती हूँ क्यों तुझे
चाँद
तू पर्याय है मेरे
चाँद का
क्योंक अक्स उसका है तुझमें
एक रात देख मचल गया
चाँद
वो तारों में और मैं खो गयी
चाँद में
तब से अब तक और
आज तक
तेज मेरा उसमें दीखता है
आसमाँ में जो
विराट छटा चाँदनी की
शायद मैने ही
बिखेरी है
क्योंकि चाँद तो खो
गया बादलों में
मेरे ही रूप की जो
कान्ति पड़ी
उसमें नहा कर ही आज
रूप निखरा है
चाँद का