चाँद…
दर्ज़ कर दिए
काग़ज पर हमने
लफ्ज़ कई,
उन लफ्जों में चाँद का जिक्र
और चाँद में तुम्हारा अक्स ।
ख्वाबों, ख्वाहिशों ने
दिया धोखा हम को
तब भी खिड़की दिल की
बंद नहीं की हमने
कभी ज़िद थी ही नहीं
हमें चाँद को पा लेने की,
पर चाँद को निहारना
बड़ा अच्छा लगता था हमको ।
कमरे की हर सिम्त
खुंटीयों पर अपने चाँद को
टांग लिया करते थे हम
पर, अब आँख चाँद पर
डाल पाते ही नहीं हम ।
खो गया है चाँद हमारा
दुनियाँ की भीड़ में कहीं
अब चाँद को
अपना कहते ही नहीं हैं हम!!
हिमांशु Kulshreshtha