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11 Jun 2023 · 1 min read

चाँद

कविता

दूर है चाँद हमसे
रूप लगता चाँदी सा
पास गये वो कहते
चमक हीन माटी सा
फिर भी स्वीकार नहीं
कही सुनी कोई बात
हमे दिखाई देती है
चाँदनी की उज्ज्वल रात
कुछ वहक जाते देख
पाना चाहते चाँद को
कुछ तुलना करते हैं
सुंदरता की चाँद से
कुछ के मन में लोभ
चाँद का खजाना पाने
कुछ तो बसना चाहते
चाँद को अपना बनाने
कुछ देखकर कलंकित
भ्रमित हो रहे हैं
चाँद की सुंदरता भूल
सिर्फ दोष देख रहे हैं
सबकी अलग है चाह
धरती मुस्करातीी है
वाह रे मानव मन
तुझे शर्म नहीं आती है
रचा है विधाता ने
मुझे तेरे ही वास्ते
तू विकास के नाम पर
चल रहा उल्टे रास्ते
मानव से देवत्व पाना
लक्ष्य यही रहा है
क्या हो गया है तुझे
चाँद पर फिदा है
अपनी शक्ति और श्रम
धरती पर ही लगा
चाँद होगा कभी नहीं
मानव तेरा सगा
क्यों दानवी माया अपनाता
सृष्टि चक्र नहीं तेरे वश
दूर से ही चमकता चाँद
पास कहाँ है जीवन रस।

राजेश कौरव सुमित्र

Language: Hindi
105 Views
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