चाँद बनके जो उतरे हो ज़मीं पर,
चाँद बनके जो उतरे हो ज़मीं पर, किसी कि नज़र ना लगे,
चुपके से आ जाओ छत पर, किसी को ख़बर ना लगे,
चुराया है तुमने, यह रूहानी नूर कहाँ से,
काज़ल का तिल लगाओ, बदनिगाही का असर ना लगे
यह शोख़–निगाही तुम्हारी, बरबस ही आता तब्बसुम,
यह रुख़सारों की लालीयाँ, दिवाने पे बनके कहर ना लगे,
हाय! बला की अदा तुम्हारी, ख़ुदा ख़ैर करे,
पिलाए जो तू प्याला अपने हाथ से, ज़हर ना लगे,
‘दक्ष’ करें दुआ कि किसीकी मुझे उम़र ना लगे,
कट जाऐ जो हँसते–हँसते, तो ज़िन्दगी सफ़र ना लगे
विकास शर्मा “दक्ष”