चाँद दूज का….
चाँद दूज का…
कित्ता प्यारा चाँद दूज का !
देखो न यारा चाँद दूज का !
अपनी लघुता पर इठलाए,
कब सकुचाए चाँद दूज का !
नयन कोर से इंगित करता,
मन को भाए चाँद दूज का !
खींच रहा मन अपनी ओर,
मस्त अदा से चाँद दूज का !
बेध रहा तम दम पर अपने,
क्षीण बदन ये चाँद दूज का !
अपनी इयत्ता में खुश रहना,
समझा रहा ये चाँद दूज का !
देख लो जी भर आज इसे,
फिर कब आए चाँद दूज का !
तुम असीम लघु ‘सीमा’ मेरी,
तुम हो गगन मैं चाँद दूज का।
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“चाहत चकोर की” से