****चाँद तारे चुरा कर ला दूँ***
****चाँद तारे चुरा कर ला दूँ***
*************************
नभ से चाँद तारे चुरा कर ला दूँ,
काले बालों में गजरा सजा दूँ।
नैनों में हमारे तुम्हारी ही परछाई,
तुम् को अपनी बाँहो में सुला दूँ।
पसीने से लथपथ शर्म की मारी,
मुखड़े से परदा हया का उठा दूँ।
मन ही मन में रह जाए न बाकी,
चुपके से दिल की बातें सुना दूँ।
मनसीरत बढ़ते कदमों के आगे,
राहों मे तेरी फूलों को बिछा दूँ।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)