“चाँद को शिकायत” संकलित
चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपावली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कल्पना है की चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं, आइये देखते हैं।
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जब चाँद का धीरज छूट गया,
वह रघुनन्दन से रूठ गया,
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है,
स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है।
तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है,
हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है,
सीता के रूप को हम ने भी सँभारा है,
चाँद के तुल्य, उनका मुखड़ा निखारा है।
जिस वक़्त याद में सीता की,
तुम चुपके-चुपके रोते थे,
उस वक़्त तुम्हारे संग में बस,
हम ही जागते होते थे।
संजीवनी लाऊंगा, लखन को बचाऊंगा,
हनुमान ने तुम्हें कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखरा कर,
मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त,
तुमने हनुमान को गले से लगाया,
मगर हमारा कहीं नाम भी न आया।
रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था,
तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था,
मैंने भी आकाश से था पृथ्वी पर झाँका,
गगन के सितारों को करीने से टांका।
सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया,
सारे नगर को दुल्हन सा सजाया
इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया,
बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया?
क्यों तुमने अपना विजयोत्सव
अमावस्या की रात को मनाया?
अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मनाते,
आधे-अधूरे ही सही, हम भी शामिल हो जाते।
मुझे सताते हैं, चिड़ाते हैं लोग,
आज भी दिवाली अमावस में ही मनाते हैं लोग।
तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है
जो कुछ खोता है वही तो पाता है,
जा तुझे अब लोग न सतायेंगे,
आज से सब तेरा मान ही बढाएंगे,
जो मुझे राम कहते थे वही,
आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे।