चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर
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चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर,
रूप का जलवा देखा जमीं पर।
गोल – मटोल गोरी का मुखड़ा,
देखा उसे लगा ज़ोर का झटका,
पांव नही लगते उड़ा जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
कोयल सी बोली मिसरी घोले,
मीठी जुबान से होले से बोले,
सुन के वाणी मैं गिरा जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
मल्लिका खूबसूरत छाया नशा,
ग़जब का रूप खुदा ने तराशा,
यकीं से परे तमाशा जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
भोली सी सूरत चंदा की मूरत,
सजने-सँवरने की नहीं जरूरत,
दीवाना हुआ ज़माना जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
होशोहवास में नहीं मनसीरत,
सूरत से बढ़ कर उसकी सीरत,
हीर सरीखी अप्सरा जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
चाँद का टुकड़ा उतरा जमीं पर।
रूप का जलवा देखा जमीं पर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)