चाँदनी से छेड़खानी
हमको भी पढो ।
मै कहता हूँ बेर को छोङो ।
सफेदे के सहारे आसमान पर चढो ।
तारो को तोड़कर चन्द्रमा से बोल कर ।
रात को राज करो ।
तारे बिछाकर दुल्हन की सेज पर ।
चांद की चांदनी को लिटाकर ।
कह दो उनसे हमको आपसे है प्यार ।
चांदनी हटो तुम नही हो मेरे बलम ।
दूर ही बिछाओ पलंग ।
आज जैसे लग रहा सारे देवर ( तारे ) और बलम (चांद ) हमी पर कर रहे दृष्टि पात ।
देखो हमसे दूर ही रहो ।
तुम रावण हो ।
मत छूना मां सीता का शुचि अंग ।
रावण सा मै अभिमानी नही था ।
छोङ दिया चांदनी को कौन करेगा जंग ।
इससे अच्छा यही है मै रहूं आनंद के संग ।
??Rj Anand Prajapati ??