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30 May 2021 · 1 min read

चाँदनी रात थी

**** चाँदनी रात थी (ग़ज़ल) ****
***************************
**** 212 212 212 212 ****
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खूब तारों भरी चाँदनी रात थी,
हूर से यार पहली मुलाकात थी।

रोज हम देखते थे उसे ध्यान से,
प्यार में मिल गई खास सौगात थी।

देख कर शर्म से लाल हो वो खड़ी,
ताकना हो गई आम सी बात थी।

काम बिन वो वहाँ खूब आने लगी,
जाल में फ़ांस की वो शुरूआत थी।

रिस्क ले पास से हम गुजर थे गए,
भीम सी बन गई मीर औकात थी।

शीत सीरत कहे प्रेम की आग थी,
ईश से जो मिली नेह की दात थी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

432 Views
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