चाँटा पत्नी का (हास्य व्यंग्य)
दिनांक 4/4/19
विधा – हास्य व्यंग्य
“तुम हो मेरी
जीवन साथी
कभी न
रूठ जाना ।”
कहा मैंने
रोमांटिक मूड में
पत्नी से
” साथी ,
साथ निभाना
कहते हो ईधर
और
झांकते ऊधर हो
पडौसन को ।”
मैंने भी कहा
बेरूखी से :
“आँखे देखने को
कुदरत ने
मैं बस रुख़सत
करता हूँ उनसे ।”
मैने भी कह दिया
बस चिढाने के लिए
अब उसने
मारा चाँटा
झन्नाटेदार
गाल पर
और बोली वह:
” हाथ दिए हैं
मारने के लिए
कुदरत ने
मैं बस
यूँ ही आजमा
रही थी तुम्हारे
गाल पर
जीवनसाथी
हो तो रहो
बन कर साथी मेरे
मत होओ
बेलगाम हाथी मेरे ”
पाँचों ऊँगली उझल
आई गाल पर
अब मैं बोला
हाथ जोड़ कर :
” साथी साथ निभाना
भटक जाए पति
गर तो जम के
हाथ जमाना
साथी साथ निभाना ।”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल