च़ाहत
इसी कश़मकश़ में गुज़ार दी हमने अपनी शाम़ो स़हर ।
मेरी वफ़ाओं का अगर हो जाए उन पर अस़र।
लिए ये ए़हद हम वफ़ा निभाते रहे हर कदम़।
मुस्क़राहटें लिए चेहरे पर छुपाते रहे अपने दर्द़ -ओ- ग़म।
के कभी तो मिल पाएगा मुझे अपनी वफ़ाओं का स़िला।
तब ख़त्म होगी ये प़श़ेमानी और बेक़रारी का ये स़िलस़िला।