चहरा रहा रात भर
आँखो के सामने चहरा रहा रात भर,
उसकी यादो का पहरा रहा रात भर।
फैलाये बैठा हूँ कब से बाहें अपनी,
तेरा इंतजार करता रहा रात भर।
मन मेरा चंचल सोचता क्यों तेरे बारे में,
तुम्हारे आँचल का साया ना मिला रात भर।
आओगे ख्वाबो में मेरे ओ दिलबर,
आँखो को बन्द करता रहा रात भर।
क्यों नही थम रहे आँखो से आँसू,
बिगा हुआ तकिया रहा रात भर।
हाल बया ना हो मेरा लब्जो में,
“मंदीप” पल पल मरता रहा रात भर।
मंदीपसाई