चहकार
गर्मी के इस मौसम में,
एक सूखे दरख्त की शाख पर.
एक नन्ही सी चिड़िया बैठी;
जाने क्या क्या कहती है..
कभी कूदती इस डाल पर;
कभी उस दाल पर जाती है..
गर्मी की शिद्दत से जैसे..
उसकी चहकार लरज़ सी जाती है ..
दूर दूर तक नही दरख़्त अब;
कहाँ बसेरा पाएगी??
अब तो सारे खेत कट गये;
तालाबों का पता नही..
कहाँ मिलेगा पानी इसको?,
कहाँ से दाना लाएगी?,
नही मिला दाना पानी तो;
बेचारी यूँही मर जाएगी.
प्यारी सी चहकार जिसे;
सुन सुन कर अपनी सुबह हुई..
आने वाली सुबह हमारी;
खाली खाली रह जाएगी..
आने वाली सुबह हमारी,
खाली खाली रह जाएगी…